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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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पाबासर

बेला-बरणण
गीत ललित मुकुट
पालस रुत माची प्रबल, आछी बात अपार।
हाची व्ही हरियालियां, नाची खुसियां नार।
नाचै खुस नारं, हरख अपारं, तीज तिवारं, पीव धरै।
सोलां सिणगारं, पटनव धारं, घर घर नारं, कोड करै।।
दम्पत दीदारं, सम्पत सारं, सुख आधारं, चिंत हरै।
बिरहणी विचारं, बारम बारं, सांझ संवारं, अंख भरै।।1।।

अंख भरै दुख में अवस, बिरहण करै बिलाप।
बणै भाप जल भेट बपु, तन पर इसड़ौ ताप।।
तन परवण तापं, सबद सरापं, कै हिव कापं, जीव दहूं।
दामण दिल दागै, सिहरां सागै, लपगल लागै, केम सहूं।।
छाती घम छोलै, डेडर डोलै, पिव पिव बोलै, बाबइयौ।
केकी किलोलं, नदियां छोलं, होद हिबोलं, लैरहियौ।।2।।

लैरहियौ जणलोक में,सावण आणंद सोय।
चार हरित पसुवां चरण,जीवण पालरजोय।।
पालर जब जोवै, सुरभी सोवै, महिसा मोवै सयधारा।
टोगड़िया टांडै, बंटौ हांडै, मोजां मांडै, सिझारा।।
खीचड़ी घी खासौ, दूधां चासौ, वाघर वासौ, हरखावै।
नींदां लै नामी, खेत न खामी, अन्तरजामी गुण गावै।।3।।

गावै करसौ गीतड़ा, पेकर सरवर पाल।
झड़िया लागी जोर री, भादव मास बिंचाल।।
भादवा बिचालै, अहि विस आलै, बाय समालै, पुरवाई।
खेता ंजल खालै, फसलां गालै, नदियां चालै, चढ़ आई।।
बाढ़ाजल बहिया, घम दुखसहिया, घमजण गहियाराय घरै।
राजी हर रहियां, भौ सुख भईयां, प्रभा पईयां धाम करै।।4।।

करैजोर फसलां कई, नामी कियौ निदांण।
सातूं साख सुहावणी, कोड हियै किरसांण।।
कोडै किरसांणं, कछु न कांणं, खेतां खांणं, निपजेला।
आभा असमांणं, धरती धाणं, महिमा मांणं, जग देला।।
बायर सुभ बाजै, फसलां छाजै, कीरत राजै आसोजी।
पावस रुत प्यारी, जग आधारी, महिमा थारी, मनमोजी।।5।।

मनमोजी हुयगा मिनख, पावस रूतरै पांण।
आछी फसलां में अबै, कातीरखी न कांण।।
काती नहं कांणं, मोजां मांणं,दीधा दांणं औसाणं।
पुरसारथ पांणं, हरली हांणं, धाया धाणं किरसाणं।।
लीधा घर लाटा, कीधा काटा, दीधा दाटा, भख्खार्यां।
आणंद पुल आठां, ठाटा बाटां, घरै न घाटा इद्कार्यां ।।6।।

ईदकारी नारी अधिक, दीप मालिका देख।
साफ सफाई सदन री, पूरम घर घर पेख।।
पूरण घर पेखं, दीपक देखं, कलह न केकं, नर नेकं।
विसवास विसेखं, नामी नेखं, राखै टेकं, हरि हेकं।।
कातिय स्नानं, घर हरि ध्यानं, देवै दानं, परभातै।
करुणानिधानं, अरजी कानं, अनुचर मानं हरसालै।।7।।

हरसातै जोबन हियौ, पग सरदी परवेस।
मगिसर पी सरदी मगन, देखौ मरुधर देस।।
दी मरुधर देसं, सरद विसेसं, ढर ढर ढेसं, हिव ढाई।
बिगड़ै घण बेसं, कदै न केसं, सरदी नेसं, सकलाई।।
सेठां संकते,ं हिव घम हेतं, चालै चेतं, सुख सातां।
निरधनां निकेतं, गूदड़ केतं, दुख घण देतं, अधरातां।।8।।

अधरातां सरदी अधिक, मास पौस रै मांय।
नीर जम गयौ नाड़ियां, सरदी प्रात सवाय।।
सरदीज सवाई, सुत बतलाई, उठ मत माई, ठर जाई।
रिव दरस दिखाी, उठोस भाी, गूदड़ माई, फरमाई।।
पुरसारथ प्यारा, बेटा म्हारा, सूरा सारा भारत रा।
नीची मत नाखौ, ऊंची ताकौ, बोल न भाखौ आरत रा।।9।।

आरत भारत ना अबै, (दहै) सकल विस्व सनमान।
भाखै भारत बातड़ी, धर वै सारा ध्यान।।
धर वै स्सै ध्यानं, कर वै कानं, मुलक समानं, दरसावै।
जांणवै जहानं, हिन्द महानं, गरमिमा ग्यानं, हरसावै।।
भारत सत भाखै, सायंत राखै, जगलज ढाकै सरसावै।
जग रौ हित झांकै, डोल न डाकै, सथसब राखै, गुणगावै।।10।।

गुणगावै गुणवान रा, मरद हतायां मांय।
कांधै राखै काम्बलौ, सरदी नांय सताय।।
सरदी न सतावै, तर तर जावै, नेड़ौ आवै, रितुराजा।
भ्रमरां मन भावै, कोयचल गावै, फूल खिलावै सिरताजा।।
छिब बेलड छाई, गलै लगाई, पौधा पाई, सोराई।
पैड़ां पुरवाई, मसती लाई, विसधर ठाई, बौराई।।11।।

बौराई संजगो बस, कामण फागण काय।
गावै नर घमा गीतड़ा, बैठा चंग बजाय।।
बस ंग बजावै, फागण गावै, जोबन छावै, लहरावै।
घूघर घमकावै, नाच नचावै, सागं बणावै, घेरावै।।
होली मंगलाई, सरद गमाी, चेत बदाई, गरमाई।
पकवान पुजाई, सीतल माई, ठंडा खाी, फरमाई।।12।।

फरमाई कविजण फजल, दमप्त सुगनां दोर।
पीव छोड परदेस नैं, घर करणी गिणगोर।
घर री गिणगोरं, हरख हिलोरं, जोबन जोरं, कामणियां।
सिंझ्यार सोरं, भा घण भोरं, देहां दोरं, दामणियां।।
बेसाख बिताई, गरमी छाई, तावड़ छाई, लोका नैं।
नाड्यां जल नांही, भूखा भाी, पसु डेंडाई, डोका नैं।।13।।

डोका नैं पसु घण डुलै, मास जेठ रै मांय।
भई खाली भखारियां, नीरण बाड़ै नांय।।
नीरण अब नाहंी, करौ कमाी, जेठी खाई, दुखदाई।
सेठां घर जाही, सांन गमाई, दांणां तांई, करसाई।।
भारत में भाय,ा घमआ कमाया, सेठ बमआया संकेतां।
बाकी सब भूखा, रुखा सूखा, चेता चूका रंकेतां।।14।।

रंक किता अजहूं रुलै, सोसण करवै सेठ।
नेकी मरजादा नरां, पापी तोड़ै पेट।।
पापी घणपेटं लहै लपेटं, काल चपेटं कुरलावै।
धर भूखौ घेटं, चिंतव चेटं, भूंडी भेटं घटकावै।।
आसाढ़ा ओदी, खाली होदी, नीरण बोदी, घर नांही।
सिंझ्या सिसकारा, निस निसकारा, चित चुसकारा, सरमाई।।15।।

सूरा-सतक
दूहा
झुक जांणी डर जवणौ, अर सहणौ अन्याय।
सूरा एता नां सहै, जै माथौ कट जाय।।1।।

अड़ ज्यावै सच ऊपरां, जिका न गूंथै जाल।
बचन निबावै बेवता, सूरा भाव समाल।।2।।

दुबलां पर राखै दया, दहै न सबलां दाव।
सरणागत रिच्चा समण, सूरां तणौ सभाव।।3।।

रिपुवां रै सामी रहै, रै भामी पग रोप।
वीर देस रै वासतै, त्यार खांण नैं तोप।।4।।

उर में भय ना आंणवै, करतां दुरलभ काज।
वसुधा पर विख्यात है, सूरां तणौ समाज।।5।।

धरम अर जातीधरा, तिरिया इज्जत तांण।
रिच्छा सूरा राखवै, जीवतदहै न जांण।।6।।

आदर सूं जीवै अवस, मलुक रखावै मान।
सूरा जवीत ना सहै, अपमऐ रौ अपमान।।7।।

विरदाया घण बिरदवै, दै वित सारू दान।
करै जगत चौकूंट में, सूरां रौ सनमान।।8।।

रिपु सारा डरता रहै, आगै हेक न आय।
सूरा देख समीप में, कांपण लागै काय।।9।।

रिच्छुक सूरा देस रा, और देस आधार।
दोरा दिवसां देस रौ, बीरां कांधै भार।।10।।

थारौ दुसमी मूं थकां, कम ना हुवै क्लेस।
जीवत जमी न जांण दूं, सूरां सौ संदेस।।11।।

झालर बगतां जलमियौ, बीर चमकतै भाल।
सिर मोटौ छोटा चरण, लोयण डोरा लाल।।12।।

उर चौड़ी आई उभर, हाचा लम्बा हात।
जोरां नखतर जलमियो, वीर रखाबण बात।।13।।

नांन्यौ पांख्या नीसर्यौ, बांणी उचरत राह।
आज धरा पर आयगौ, दुसमण करबा दाह।।14।।

दिल पर गोली दागदी, दुसमी मोकौ देख।
मरतौ मरतौ मारगौ, इसड़ौ वीर अनेक।।15।।

नान्यौ रहयौ निहारतौ, नालौ काटत नांण।
हाथ बढ्‌यौ कटार हित, जंग संयोगी जांण।।16।।

सूती जच्चा साल में, कंनै टंकी करवाल।
बालक ससतर लेवबा, उठ उठ करै उंताल।।17।।

जोसी टीपण जोबतां, धूजण लागौ धीर।
बेर्यां खून बहावसी, बणसी इसड़ौ बीर।।18।।

बरस पच्चीसै बीच में, सतरूवां संताप।
देसी माथौ देस नं, अमर हुवेला आप।।19।।

बालक लागौ बोलबा, साद जियां सादूल।
चुबबा लागी चित्त में, सतरुवां रै सूल।।20।।

सामी समबा सत्रुवां, करवै ताकत कूंत।
कर धारी करवाल नैं, पनरै बरसां पूत।।21।।

गाजर सम रिपुवां गिणत, करतौै दुसमण कांण।
हाजर लड़तौ देस हित, पिता निसारै प्रांण।।22।।

झाग अणाया जोर रा, गोडा दिया टिकाय।
दुसमण वालै सेंग दल, हाची मचगी हाय।।23।।

झाक झीक मचगी, जबर, खागी रखै न खेर।
दुसमम कायर दोड़ता, उडिया मूंड अवेर।।24।।

सुरगां तात सिधावियौ, रिच्छा देस करंत।
बीर मात खण बासतै, जोहर मांय जलंत।।25।।

कुल में नांव कमावबा, तर तर हुवौ तय्यार।
सात बरस रौ सूरमौ, कांधै लीधी भार।।26।।

ससतर घरां समालिया, अणिया तेज उपाय।
असव तणी असवारियां, कमधज रयो कराय।।27।।

मान दियौ दत्त मंगणा, बोरां करज चुकाय।
बदलौ चुकांण बापरौ, कमधज कोप कराय।।28।।

बरस बारवैं बेरिया,ं सूर दिया समाचार।
आऊं फरज उतारबा, ते दिन रह्यौ तयार।।29।।

चवदै बरसां चालियौ, बिककसी काय बिसेस।
चढ़ियौ घोड़ै चातरक, दुसमी मेटण देस।।30।।

जाय मचाई जंग में, जोरां झाका झीक।
बदलौ लेण बाप रौ, सूरौ हुवौ सरीक।।31।।

धर धूजै दिस धहलवै, दुसमौ कांपै देख।
सिर काटण लाखूं सपट, अदगौ सूरौ एक।।32।।

अरि सिर काटै आगतौ, सेनां मचियौ सोर।
दिपवै सूर दोपार में, जेठ रवी सम जोर।।33।।

वेरी भागण लागिया, देख सूर दीदार।
अरक जेम उग आविया,ं उठ जावै अंधकार।।34।।

चवै रगत अरियां चलत, तड़ित जेम तलवार।
काली कंकाली करै, सूरा रौ सतकार।।35।।

खेलां टाबर खेलतां, बणावै नायक बीर।
सला देय सेना सजै, समर जितावण सीर।।36।।

रमता धुकलियां रमै, सेना रखै समाल।
दुसमण हंदा देखनै, भच भांगै भुरजाल।।37।।

ऊंचै आसण ऊपरां, जमवै सूरौ जाय।
बाकी टाबर बैसिया, आसण नीचै आय।।38।।

मूंगी धरती मुलक री, सबसूं बढ़कर देस।
करबा देऊं नां कदै, पग सतरू परवेस।।39।।

भाव दरसिया भीतर,ी सूर बीरता साथ।
मान रखासी मुलक रौ, औ बालक अबदात।।40।।

समझै बालक सतरूवां, उभा निरभय आय।
धूम मचाई रिपू धरा, सूरी एकण जाव।।41।।

केयां रा सिर काटिया, घाल्यां केयां घाव।
जीत आवियौ जंग सूं, चित्त में सूरै चाव।।42।।

अंजस कुल नै आवियौ, हरख देस में होय।
आवण लागा आघ सूं, सगपण करवा सोय।।43।।

विरती भाव विरांगणा, लखै सासरै लोग।
सुलखणा तणी सुन्दरी, सजियौ सूर संजोग।।44।।

परणंती वधु परखियौ, हतलेवा रौ हात।
आंटण खग रा ओलखै, गरिमा सूरै गात।।45।।

कंत रवी सस कांमणी, गौरव भरियौ गात।
अरक सुधारक साथ अब, मिलण हुवौ धर माथ।।46।।

करियौ हरख हुलास कर, कामम मलिता कंत।
धर चुड़़ला अर धरम रै, दुसमी लगै न दंत।।47।।

हूं जलम्यो हूं देस हित, निबलां राखण नेह।
धरम नार रौ पक्ख धर, दुसमी मारणदेह।।48।।

मरजाऊ कै मारल्यूं, ठावा कीरत ठांण।
बेर्यां खून बहाय दूं, तिल तिल भूमी तांण।।49।।

माया रौ मोह न मंनै, काया रौ नहं कोड।
धरम सिरै रिच्छा धरा, छिपु ना हूं रणछोड़।।50।।

बाजा रणभेरी वजह, सतूर आयो सींव।
हुकम दिरावी देस हित, समर पधारै पीव।।51।।

पटु पवि रण रा पेरिया, ससतर लिया समाल।
अमर उतारण आरती, वधु आई सज थाल।।52।।

कुंकूं मिलै न कोड सूं, तिलक कमी लख तांह।
अपणी काटी आंगली, भरी रगत सूं बांह।।53।।

तेण रगत रौ तिलकड़ौ, सोभा भालज सीस।
वीरां दहै बिरांगणा, अमर नेह आसीस।।54।।

असव दुड़ाया आगता, पवन गती सा पाय।
दुसमी मारगण देस रा, ऊभा सेना आय।।55।।

काल काल मिल कूकिया, दुसमी गलै न दाल।
टाल टाल सिर टूटवै, करसूरै कर बाल।।56।।

जीत आविया जंग सूं, अूबै मिलैला अंग।
बीर कहै विरांगणा, नीं तौ सुरगां संग।।57।।

दहा रंग अर देवसां, जीत आवियां जंग।
सेवा में मिलसां अवस, नीं तौ सुरगां संग।।58।।

लाखां माहंी लख लही, अरियां सूरै आभ।
कुण इसड़ी करवाल रौ, जंगा देय जबाब।।59।।

जिणदिन सूरौ जावसी, बाढ़ा खून बहाय।
फिरै लार काली फजल, मोज लेण मन मांय।।60।।

रगत भरत खपरां रया, रुद्र देव राजेह।
काली कंकाली घणी, गल उतरत गाजेह।।61।।

मिरडा अरोगै रग्त मन, मिरड पोय मुंडमाल।
सूरौ आगै संचरै, तर सिरखूना ताल।।62।।

हेक झटक चन्द्र हास रो, सिर दस दस लै साथ।
हंसै काली हुलास हूं, महादेव मुसकात।।63।।

जेठ रवी जिम जंग में, तपियौ सूरौ तेज।
अरिदल इसड़ी अगन में, जलतां लगै न जेज।।64।।

समर धरा सागर समी, जोधा सजल समान।
पोयण जिम थाी प्रभा, अदगी सूरै आन।।65।।

ओपै समर आकास में, चकम रया चितवान।
तारा जिम जोधां तवूं, सूरौ चंद समान।।66।।

बरसाला जिम बरसवै, कर सूरै करवाल।
बालू जिम अरि सिर बहै, कटण मायं कंकाल।।67।।

आवत जावत आगती, केयां रा सिर काट।
पटक रही खग धर परां, पलक पलक परलाट।।68।।

कूद परौ चढगौ कमध, करी माथ केकांण।
मेघाडम्बर डगमगै, छिता रयौ रिपु छांण।।69।।

मचगी दुसमी सेन मझ, हाची हाहाकार।
दरसी पीढ़ां दोड़तां, लिया सूर ललकार।।70।।

च्यारूं तरफ रिपुवां चमूं, तिण में सूरै तांण।
बाय रया इसड़ै बगत, कर दोनूं किरपांण।।71।।

मारा मार सिर मेलिया, अरियां रा अणपार।
सहै हेकलौ सूरमौ, चार तरफ रा वार।।72।।

भाला दूर भगाविया, तलवारां दी तोड़।
जमदाढ़ा पड़गी जमीं, छिपै रिपु रण छोड़।।73।।

मरगा दुसमी मोकला, पकड़ै बचिया पाथ।
झंड़ौ हाथां जीत रौ, सूर फिरै लै साथ।।74।।

आया घर इकदार सूं, सजनी थाल सजाय।
आखौ बारत अंजसै, घर घर सूर बधाय।।75।।

अणियां तलवारां अड़ी, भड़िया भालै घाव।
जमदाड़ा रा झेलिया, भा सरीर परभाव।।76।।

रोमरोम में भर रया, गात अनेकूं घाव।
सहन किया पोयण समझ, दुसमीं भालां दाव।।77।।

म्हैं तो झेल्या मोकला, दुसमी रहिया देख।
जिरै पड़ी म्हारी जबर, उठै न पाछौ एक।।78।।

दोय जीतिया देस रा, प्रबल सूर जुद पार।
रण छिड़ियां राजी हुवौ, तीजा में तय्यार।।79।।

हक मरदां मरणौ हुवै, बरस पचीसै बीच।
देसां दरखत रगत सूं, समर बिचालै सींच।।80।।

दुसमी रौ सैनकि दल, खूब आवियौ खीज।
सूरा कम हूं तौ थका,ं रटक कटक लै रीज।।81।।

सूरां री सेना समर, असब गिरद आकास।
अंायिारौ छायौ इला, पखै न रिव परकास।।82।।

टप टप घोड़ा टाप सूं, सहलै घर फण सेण।
मारण रिपु मेढ़ी मणा, पखियै कोप प्रवसे।।83।।

मार मार रण मेलिया, माथा खूनी मांस।
नदी खून पूगी निकट, रिपुवां ारा निवास।।84।।

सूर अगै लारै सिवा, तिण लारै त्रिनेंण।
उडीक करावै अपछरा, सुरगां साथ वरेण।।85।।

सिर कटियौ सूरा तणौ, नभ दिस खूनी ाार।
मानौ सिव सिर आपसूं, बूढी गंगा ारा।।86।।

ाड़ झूंझै ाूजै ारा, मुख हंसवै ार माथ।
कबन जुा सूरौ करै, रिपु छाई चख रात।।87।।

कबन जुा सूरौ करै, भुज दोनुं खग भाय।
दरसण करता देवता, व्योम सुमन बरसाय।।88।।

कबन जुा कीरत कथै, सूरां साथ सबाय।
जंग बिचालै झूंझतौ, चारण जोस चढ़ाय।।89।।

मरण तिंवार मनावियौ, खत्राणी स्सै साथ।
जौहर मांही जायनैं, होम हुई मिल हाथ।।90।।

आ जुा गत ही पहल री, आज गती कीं ओर।
जमदाढ़ां भालां जगां, दिपै राइफल दोर।।91।।

सजै मोरचा सूरमा, रेफल हाथां रेय।
अरियां सीनै ऊपरां, दट दट गोली देय।।92।।

लोड करै पल पल लखां, सूरौ रेफल साथ।
रिपु मोरचै राखिया, हिलना सकिया हाथ।।93।।

ाुवौ उठ थलवट ारा, रै दिन रा व्ही रेंण।
कारतूस किलकार सूं, गूंज मचाई गेंण।।94।।

सूरौ पेंटण टेंक सथ, ाावा बोलण ााय।
ामकै सूं अरि ाूजता, मरै मोरचां मांय।।95।।

उडतौ देख आकास में, दुसमी जवायु यान।
सूरौ गोलौ साजियौ, पड़ै जाज ार आन।।96।।

सूरौ गोला साजन,ै ारा मचाई ााक।
मौसम ठंडै मांयनै, गरम हुवौ गेणाक।।97।।

गोला सूरौ गेरिया, बैठ बिमाणा मांय।
बरसाला जिम बरसवै, पलै दुसमी पाय।।98।।

छोड भगै रिपु निज छिता, लडिया झूठा लाड।
सूर रिपुवां सरहद में, झंडौ दीनौ गाड।।99।।

रिच्छक साचा देस रा, सूरां दौ सतकार।
कवियौ लिछमण कीरती, आखी बुा अनुसार।।100।।

वीर-वखांण
दीच अरथ मनमोद

धरमवीर सतवीर धिन, सूरवीर घण सांन।
दानवीर महिमा दुनी, वीर करम वाखान।।
वाकान करम वीर रा सुकवी बणैं, दानवीर री जग क्रीत दाखै।
सूरवीर नैं जांणवै संसार स्सै, भलौ सतवीर नैं लोक भाखै।।
धरमवीर री महिमा अणूती धरा, रजा ना पाप री कदै राखै।
आछा कवीजै ठोड़ सब आपरी, ढाल होय जगत री साज ढाकै।।1।।

धरम दसरथ निभाय धर, पाछै तजिया प्रांण।
धारै राम नीति धरम, पग पग बनां पयांण।।
पयांण वनां पग पग कीधा थरापत,
बरस चवदै बन मांय बीता।
पितु अग्या रख भीसम ध्रुम पालियौ,
सरीर प्रजालियौ अगन सीता।।
हाड निज काडवै दधीजी धरम हित,
घणौ ध्रम दाखियौ किसन गीता।।
न्याय हित मांस निज काटियौ सिवि नृप,
जुधिस्ठर नृप सत समर जीता।।2।।
करम दानव्रत कारमै, रै पुलकत जग रोम।
पोहर तिणरै नाम पर, बाजण लागी भोम।।
भोम लगी बाजणै पोहर करण भल,
अचल चोल ओढ़ै दान अंगां।
पावै नृप भोम विक्रमारिव दानपथ,
सतरै हरिसचन्द हुवा संगां।।
करमवीर किसन सरजुन री कीरती,
राजवी लोक में घणा रंगां।
अभिमन्यु भीमज सुरवीर ओपिया,
दिखायौ पराक्रम अरि दंगां।।3।।
जीवत जावै ना जमी, रै थावै कुलरीत।
मर जावै पावै मगुत, पूरी धर सूं प्रीत।।
प्रीत धर सूं पूरीजग वीरां पखै,
लखै रिपु ूपरां कोप लेता.
मूंछा मरोड़वै रोड़वै अरि मग,
छबी सूं अरि दल पाय छेता।।
जीव सूं महो ना ज्यांरौ जग जांणवै,
देखां कदै न धन जीव देता।
सरम जो निरबलां दुरबलां साजवै,
भांजवै खलां रा कंठ बेता।।4।।
गिरी कन्दरां घूमिया, सहिया घम संताप।
अमर हुवा घर ऊपरै, पोरस रांण-प्रताप।
प्रताप रांण पोरस धीर गम्भीर प्रभ,
मुगलां रा चाव घणा दाव मेटै।
हिन्दवांण रिव लाज राखी हिन्द री,
बडाल आसण स्वाधीन बैठै।।
जंगवीर नाम लै थारौ झूंझवै,
नाम अर काम छिब खलां नेटै।
तसवीर तुव देख धारलै तेज तप,
हुवै नर बीरता छाहंह हेटै।।5।।
दल मगुलां रौ देखनें, तिण पर पड़ता तूट।
छापामार पद्धति छवी, रचै सिवाची रूठ।।
रूठसिवाजी रचै रण मुगल राज सूं,
भय हियै ओरंगजेब भारी।
देखियौ हार समुख घम बार मुगल दल,
कला रण हुतां ना लगी कारी।
मराठा राजवै छाजवै हिन्दमझ,
धीरता वीरता छत्रधारी।
सिवराज सिरताज सजग स्वाधीनता,
साजवी हिन्द नै प्रबा सारी।।6।।
अमर सिंघ राठौड़ इल, समरवीर सिरमोड़।
नृप भागी नागांण रौ, रिपु दल दीना रोड़।।
रोड़ दीना रिपु दल अमरै राजवी,
बहादुर छाजवै रणा भीनौ।
किलै ऊपरा तूं अस्व हूंत कदियौ,
दाव ना कदै रिपू लागण दीनो।
कटारी भाड़ दी थम्ब में वीरकर,
किलमां ऊपरै वार कीनौ।
जग गावै गीतां कीरती जेणरी,
लोक में सुजस रस बीर लीनौ।।7।।
मगुल हुकम ना मानियो, जस जोधांणै जास।
कमधज सुतन आसकरण, विपियौ दुरगादास।।
दुरगादास दिपियौ भड़ राठौड़ दल,
जिमें स्वाधीनता प्रीत जागी।
वीरता जावती थांमली तूझ कर,
खत दवल ओपियौ वीर खागी।।
नाकराखी तुंही नौकूंटी नाथ री,
त्यागियौ राज रौ नेह त्यागी।
वीरां सिरोमणी निरूलां वाहरु,
लगन सत धरम री परम लागी।।8।।
नरां पौरस नसावियौ, हुईधरा पर हथ्थ।
ना्‌री अगवीं नीसरै, पुनः दिखावण पथ्थ।।
पथ दिखवाणपुन ध्यान धारै प्रथम,
लिछमी बाई खग हाथ लीधो।
गाजवै रांणी खला गजण गरबह,
दल भंजण फिरंगा देस दीधी।।
विरांगणा रूप स्वाधीनता वाहरु,
पराधीनता नहं घूंट पीधी।
वारिया प्रांण धि नवतन रै वासतै,
काज रण सासतै अमर कीधी।।9।।
चन्दर सेखर चेतणा, सजग हुवौ स्वाधीन।
भगत फिरंग बिरोध में, कारज सारा कीन।।
कीन सारा कारज बाजर जारज फिरंग कल,
चेतमा बरै परताप चोलौ।
लोरड फिरंग पर निसांणी लेयनैं,
गेरियौ चांदनी चोक गोलौ।
होमियौ सरवस्व केसरी देस हित,
मोत पुत देख ना हुवौ मोलौ।
इता वीर अमर रहीस इतियास में,
लेयनैं नाम आं सीस लोलौ।।10।।

पन्ना 21

 

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